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संजीवनी है दलितों के लिए आरक्षण


दलित एक्ट के खिलाफ सवर्णों ने आज यानि कि 6 सितंबर 2018 को भारत बंद बुलाया है... अब तक हमने सुना था कि सवर्ण समाज में जनरल कॉस्ट वाले ही आते हैं ... पर आज जिस हिसाब से भारत बंद बुलाया गया है, इससे साफ स्पष्ट हो जाता है कि सवर्ण समाज में ठाकुर, ब्राह्मण के साथ-साथ ओबीसी वर्ग की जातियां भी आती है... पूरे देश में बंद का खास असर तो नहीं दिख रहा है... पर कुछ गोदी मीडिया इसको बड़े स्तर पर आंदोलन बनाने की फिराक में हैं... शायद ऐसा करने से ऐसा कुछ होने वाला नहीं है...

2 अप्रैल 2018 को दलित समाज के लोगों ने भारत बंद बुलाया था ... उस भारत बंद का कुछ खास असर भी नहीं था.. पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटते हुए एससी-एसटी एक्ट को लागू कर दिया... यानि कि अगर गैर दलित जाति का व्यक्ति किसी भी दलित को परेशान करता है या परेशान करने की कोशिश करता है तो आरोपी को बिना किसी जांच के ही गिरफ्तार किया जा सकता है.... और कई मामले में ऐसे केस भी सामने आए हैं कितने केस सही साबित हुए और कितने केस गलत साबित हुए .... यानि कि कुछ लोग संविधान का गलत उपयोग करके कानून की धज्जियां उड़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा रहे हैं..
पर मेरा मानना है कि हर एक कानून की धज्जियां किसी न किसी के द्वारा ही उड़ाई जाती है... अधिकतर तो कानून की धज्जियां तो वही उड़ाता है जो रसूखदार होता है... वो चाहे जिस जाति धर्म या फिर किसी पार्टी की ही तरफ से क्यों न हो...

रही बात आरक्षण की तो... हमारे देश में दलितों को आरक्षण उतना ही जरूरी है जितना कि एक भूखे को भोजन कराना, प्यासे को पानी
वैसे भी आजकल तो दलितों को आरक्षण नहीं मिल पा रहा है, जिन्हें आरक्षण की वास्तव में जरूरत है.. पर जितना आरक्षण दलितों को मिल रहा है उसे बरकरार बनाए रखना बहुत जरूरी है... अगर दलितों को आरक्षण नहीं मिलता तो ये भी समाज के लिए ही घातक साबित हो सकता है...

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