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भीख मांगना पेशा है या मजबूरी......






....समझ से बाहर है..कभी कभी इसे लोग मजबूरी में करते हैं और कितने लोंगो ने इसे पेशा बना रखा है बस अब कुछ नही करना है बस भीख ही मांगना है..
जो भिखारी मेरे सामने आता है मैं तो उसे कभी वापस नही करता चाहे वो जवान ही क्यूं न हो..
मुझे कबीर दास का दोहा याद आ जाता है..



मांगन मरन समान है मत कोई मांगो भीख.......



मैं सोचता हूं कि वो आदमी तो अब मर चुका है .या खुद को मार लिया है तभी वो भीख मांग रहा है..जो आया मैंने तो उसे दे दिया ..पर एक हमारे दोस्त है.. उनके सामने एक भिखारिन आती है उन्होने पैसे नही दिये उस भिखारिन  से बोलते हैं कि चलो मेरे ऑफिस में झाड़ू-पोछा करो. तुम्हें 1500/ महीने देंगे तो उस भिखारिन ने काम करने से  साफ मना कर दिया कहा कि मैं तो हर रोज 1500 से 2000 कमा लेती हूं , मैं काम क्यों करुं...
पर हाँ इतना जरुर है कि कुछ लोग मजबूरी में मांगते हैं..जिन्होने भीख मांगना अपना पेशा नही बनाया है वो काम न मिलने के कारण मांगते है और काम मिलते ही भीख मांगना छोड़ देते हैं..
पर अधिक से अधिक लोग भीख मांगने को अपना पेशा बना लिया है ..गांव देहात में तो कम है पर भीख मांगने का पेशा सबसे ज्यादा शहरों में है... ट्रेनों में है..कुलमिलाकर कहा जाए तो पब्लिक प्लेस पर ज्यादा से ज्यादा है..



मुझे लगता है कि भीख मांगने वाले को भी परमिशन सरकार को देना चाहिए कि भीख कौन मांग सकता हैं... सरकार को इस पर सोचना चाहिए औऱ ठोस कदम उठाना चाहिए कि भीख कितने लोंगे से  वो ले सकता है...भिखारियों के भी सम्पत्ति की जांच होनी चाहिए..

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